Thursday, September 26, 2013

सुपरहीरो/Superhero (कहानी)



"रोहित… रोहित कहाँ है? जल्दी आ शुरू हो गया, 'कैप्टेन कपिल और बिजली का चोर' 

…'कैप्टेन कपिल' और उसका साथी 'चमटू' कमअक्ल सुपरहीरो हैं जिन्होंने दुनिया बचाने का बेडा अपने ऊपर उठा कर बेडा गर्क किया हुआ है... 

दोनों अपने गोपनीय अड्डे पर काला बुल्ला (उनका परम्परागत शत्रु) पर अनुसंधान कर रहे थे। अचानक बिजली चली जाती है, चारो और स्याह अंधकार फैल जाता है जैसे किसी काले हब्शी ने पूरे शहर को गले लगा लिया हो। कबूतरों की गुटर-गू से जिन्दगी की सुगबुगाहट जान पड़ती है नहीं तो अँधेरा, खौफ़ का ही पर्याय है। 

चमटू ने खिड़की से बाहर देखा, "कैप्टेन पूरे शहर की लाइट गुल है, कहीं ये काला बुल्ला का कोई नया दांव तो नहीं है?, लेकिन वो तो जेल मैं बंद हैं!"

कैप्टेन कपिल: "मेरे अनुमान से, उसने जेल में गश्त लगा रहे, सिपाही को बोला होगा, देख-देख उधर उड़ने वाला कबूतर, फिर सिपाही ने ऊपर देखते हुए ताज्जुब किया होगा, कहाँ है? कहाँ हैं?, मौका पा कर उसने जेल के पास खड़े उस सिपाही की गर्दन पकड़ ली होगी और एक हलके सधे हुए वार से उसे चित करके उसकी जेब से चाभी निकल कर भाग गया होगा, रास्ते में लिफ्ट नहीं मिलने पर उसने बेहोश सिपाही की जेब से निकाले हुए बस पास का इस्तेमाल कर सीधे पॉवर हाउस पहुँचा होगा और फिर वहां गड़बड़ी की होगी ताकि पूरे शहर की बिजली चली जाए और काला बुल्ला अँधेरे में खो जाए।"

चमटू: क्या बात है बॉस क्या गेस किया है यू आर रियली अ सुपर-डुपर सुपरहीरो, लेकिन कैप्टेन यहीं बात अगर आप अपने पेंट की ज़िप बंद करके बोलते तो, दर्शक ज्यादा इम्प्रेस होते, ही ही ही"

कैप्टेन (खिसियाते हुए, ज़िप बंद करता है जो वो आज फिर भूल गया था) :"चमटू, हँसना बंद करो, अब बात बहुत गंभीर हो गयी है, लगता है अब वक़्त आ गया हैं अपना सबसे खतरनाक हथियार वूडी-ऑइला का इस्तेमाल करने का"

चमटू: "आपका मतलब उस तेल पिए हुए डंडे से हैं ना कैप्टेन, वूडी-ऑइला! सुनने वाला तो नाम से ही मर जाए, ही ही ही" 

तभी सूक्ष्म रौशनी का झमाका होता, "लाइट आ गयी लाइट आ गयी" अरे आंटी आप! चमटू जैसे नींद की औंघाई से जागा होl 

… ये गोपनीय अड्डा और कुछ नहीं एक पेइंग गेस्ट हाउस है, जहाँ कैप्टेन कपिल और चमटू रहते है, आंटी वहां की मालकिन है।... 

आंटी: " नमूनों फ्यूज उड़ गया था, मैंने ठीक कर दिया"

"लेकिन फिर आस-पास के सारे घरो की बिजली क्यों बंद है"

"क्योंकि बाकि लोग उल्लू नहीं है जो रात के तीन बजे तक जागते रहे, आंटी ने चिल्लाते हुए दरवाजा बंद किया।" 


रोहित और निहार हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए। 

"ये कैप्टेन कपिल और चमटू दोनों बस कमाल के हैं, मैं इनका कोई भी एपिसोड कभी मिस नहीं कर सकता, सुबह-सुबह ऑफिस जाने से पहले इनके कारनामे देख लो और पूरा दिन हंसते हंसते निकल जाएगा" निहार ने ठिठोली की।

"भैया लेकिन हमारे सुपरहीरो का क्या हुआ? दो वीक निकल गए अभी तक कुछ फाइनल नहीं हुआ"

निहार और रोहित दोनों भाई है, निहार 30 और रोहित 25 वर्ष का हैं, बचपन से ही दोनों सुपरहीरो के उन्मादी हैं, एक सुपर कमांडो ध्रुव और बेटमेन को आदर्श मानता है तो दूसरा सुपरमेन और नागराज को ले कर उन्मत्त रहता है। निहार का कद बढ़ गया, साइकिल के दो पहिये चार से प्रतिस्थापित हो गए, आँखों से कौतुहल उतर कर, चश्मे को निमंत्रित कर गया। गालो पर उगी ढाढ़ी ने गोलू-मोलू की उपाधि से विभक्त कर दिया। वहीँ रोहित के स्कूल बैग का वजन, कॉलेज में आते ही एक-चोथाई रह गया, सूरज से पहले जागने वाला अब, अँधेरी रातों कर अनुरागी बन बैठा, यौवन दबे पाँव घुसपैठ कर चुका है पर लड़कपन को चित्त होना बाकि रह गया। निहार और उसका छोटा भाई ऑफिस और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के अलावा अभी भी अपने सपनो को जी रहे हैं। दोनों को एक नया सुपर हीरो बनाने का जूनून है जो सभी मौजूदा सुपरहीरो से अद्वितीय हो।

"रोहित मेरा रिसर्च अभी जारी है, कल सन्डे है कल डिसकस करते है", लैपटॉप बैग उठाते हुए निहार, पिताजी के चरण स्पर्श करके मिली दुआऒ को, अपने पांच साल के बेटे को सौंपते हुए, पत्नी की मुस्कान की पावती के साथ ऑफिस के लिए निकल पड़ा।

आज ऑफिस से जल्दी निकलना हैं, अपने बेटे का नए वाले मॉल में गेम्स खिलाने का 7 दिन पुराना तकाज़ा या फिर जीवनसाथी को समय ना दे पाना की शिकायत का अंत अथवा पिताजी को बीमार शर्माजी से मिला लाने का अनुरोध इनमें से किसी भी एक कार्य की सिद्धी जरूरी है।

ऑफिस! इंसानी जरूरतों को मुकम्मल करने के लिए सशर्त बनी एक मण्डली, उधर गिरधर बाबु बैठे है जिनके लिए एक दिन में दो काम करना एक अभिशाप हैं, उनकी "बने रहो पगला काम करेगा अगला" नारे में अलंघ्य आस्था हैं। निहार के आते ही गिरधर बाबु ने टोका गोयल साहब ने बुलाया है अन्दर, अभी बंसलजी की क्लास लग रही हैं उनके बाद जाना।

बंसलजी, रंग गाढ़ा, मानो किसी ने कोलतार का ड्रम उलट दिया हो, बॉस के सामने खरगोश और स्टाफ के सामने पूरा जोश, अन्दर जाने से पहले, वीररस के कशीदे पढ़ रहे थे। भीतर बॉस के तेवर से बंसलजी जी का नियंत्रण इस तरह डगमगाया की सांस को अन्दर की तरफ खीच कर तोंद को कम करने का प्रयास विफल हो गया।

बॉस! यानि गोयल साहब, मध्यम कद-काठी, किसी मूर्तिकार की रद्दी रचना, सर पर मुट्ठी भर बाल छितराए है मानो किसी ने पान खा कर पीक की गोली मारी हो, चेहरा सिंघाड़े की याद दिला दे।, 48 किलो वजनी कृशकाय शरीर के अधिपति, मुहँ खोले तो, ऑफिस के शीशे अपनी-अपनी खैरियत के लिए भगवान के साधक बन जाते है। 

"पता नहीं आज कौनसा ड्रामा होगा? वैसे ही कमर दर्द से अकड़ी जा रही है" निहार ने पेरासिटामोल पानी के साथ गटकते हुए कहाँ।
बहुधा ऑफिस में लोग घंटो सिद्ध योगीओ के समान एक ही मुद्रा में की-बोर्ड पर किटर-पिटर कर लेते हैं और अन्दर बैठा बॉस उनकी कुर्सी पर अचल और अडिग भंगिमा से भले ही तृप्त हो जाए लेकिन उसे इस बात की सुध क्यों नहीं आती की जब वो खुद नौसिखिया हुआ करता था तो, वो भी घंटो कुर्सी तोड़ कर अपने मालिक को छलता था। आपको पता है की हाकिम 8 की जगह 10-11 घंटे रोकेगा तो काम भी आपको मंध्यांतर के बाद ही याद आता है। इस उहापोह में बाबू के साथ ढकोसला करते-करते आप अपनी सेहत की बाजी लगा बैठते हैं, और बट्टाखाता तंदुस्र्स्ती के लिए आलस्य व उच्छृंखलता के स्थान पर टेक्नोलॉजी को कलंकित हो जाती है। 

बंसलजी बॉस से छूटते ही, ये निश्चित होने पर की दरवाजा बंद हो गया अब बडबडाहट अन्दर नहीं जायेगी, पीठ पर लदे फटकार और घुडकियों के गठ्ठर की अवहेलना कर, अपने चिर-परिचित अंदाज में लोट आये, "सुना आया मैं भी अन्दर, बॉस होंगे अपनी जगह, यहाँ कौन दबता हैं? गलती तो की हैं कोई अपराध तो नहीं किया ना", पतली-पतली 9-10 बालो वाली मूच्छो पर तांव देते हुए, बंसलजी सहसा जोश में आ गए, "हम उन लोगो में से है जो जेब में इस्तीफ़ा ले कर घुमते है, पचासों जॉब भरे पड़े है, लेकिन थोडा लिहाज़ है, इसलिए पड़े है, हाथ चलते रहे इसलिए आ जाता हूँ नहीं तो बीघो जमीन पड़ी हैं, दुकाने-मकानों की गिनती नहीं है, तीन पुश्ते भी कम पड़ दोनो हाथो से लुटाने के लिए" 

लोगो के लिए विस्मय की बात ये थी की, यहीं बंसलजी जो पिछले 5 मिनट में संपन्न बन गए तो पान वाले का बकाया 60 रुपया बचाने के लिए पिछले 20 दिनों से घर जाने का लम्बा रास्ता क्यों अख्तियार कर रहे है?

"निहार, विकास आज आया नहीं, तुम उसकी फाइल्स भी कम्पलीट कर दो, अर्जेंट है" गोयल साहब ने अपना फ़तवा सुनाया। 

"सर लेकिन मेरे पास पहले से ही 3 अर्जेंट असाइनमेंट्स हैं, और आज मुझे थोडा टाइम पर भी निकलना था तो वो... "

"तो, ऑफिस बंद करू दू, तुम सब लोगो को फ़ोन करके पुछू, गुड मोर्निंग निहारजी अगर आप के पास थोडा समय हो तो आज ऑफिस खोल जाए, वहां हेडऑफिस से गोलिया चल रही हैं और यंहा, सर मे आई गो टू टॉयलेट? मे आई गो अर्ली? व्हाट नॉनसेंस" 

"ये खन्ना एसोसिएशन की फाइल लो, इसे कम्पलीट करके शाम तक दो, साथ ही मटेरियल रिपोर्ट का रिव्यु और बैंक का 3 महीने का रिकोंसिलेशन भी मंडे को 11 बजे तक मेरी डेस्क पर होना चाहिए मिस्टर निहार, और हाँ टाइम पर ऑफिस आया करो।"

टाइम वाली बात ने बाकि सभी बातो को फीका कर दिया, निहार दांत पीसते हुए सीट पर आ कर बैठ गया, "यहाँ साला रात को 12-12 बजे तक रुको, कोई पीठ थपथपाने वाला नहीं है और सुबह एक सेकंड भी लेट हो जाओ तो अछूतो सा सलूक होता है। इन्हें तो वो लोग पसंद है जो ऑफिस में आते ही नींद की गोली खाले और शाम 7-8 बजे का अलार्म लगा कर उठ जाए, बस देर तक बैठ जाओ भले ही पूरे दिन एक पेपर तक हाथ में ना लो। हम जैसे लोग 8 घंटे के काम को 4 घंटे में कर दे तो क्या हाफ डे में घर जाने के लिए कह देंगे?" 

उधर रोहित कॉलेज पहुंचने को है, अगले मेट्रो स्टेशन पर ही है कॉलेज हैं, शायद मेट्रो में लोगो को देख कर 'सुपरहीरो' के कोस्ट्युम का आईडिया आ जाए। रोहित को बचपन से ही सुपर हीरो बनने शगल था, मम्मी का ब्लैक स्कार्फ को पीछे बाँध कर 'बेटमेन' बनना हो या गत्ते को स्टार की शेप में काटने के बाद नेकर के बटन पर चिपका, पापा की मोटर बाइक पर बैठ कर, चिल्लाना मैं हूँ 'सुपर कमांडो ध्रुव'। वो तो बाद में मालूम चला की वो गत्ता नहीं, पापा की इम्पोर्टेन्ट फाइल थी। डांट की वेदना ने भोजन से मोह भंग कर दिया, लेकिन जब स्नेहभाजन भिन्डी की सब्जी की बोध हुआ तो भोजन अस्वीकरण का कड़ा निश्चय सहर्ष वापस लेना पड़ा। 'ध्रुव' से प्रभावित रोहित हमेशा पठन-वाचन में अव्वल रहा। निर्भीकता, खरापन, नैतिकता व स्थिरता ने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा। 

सामने खड़े किशोर की नीची उतरती जीन्स ने कॉस्टयूम के आईडिया में खलल पैदा कर दिया। मेट्रो में नीचे झुके आधुनिक चेहरे ज़मीं से अभी काफी दूर है। झुके हुए चेहरे,जो कभी केवल इम्तिहान के समय हर देवीय मूर्त के समक्ष स्वयं नतमस्तक होते थे, उन्हें देख कर ये निचोड़ निकलता है की आज के ज़माने में केवल वही सर उठा कर जी सकता है, जिसके पास स्मार्ट फ़ोन ना हो ही ही ही। सनातन काल से उच्चतर होने की प्रतिद्वंद्विता अस्तित्व में रही है, उच्चतर होने के क्रम में सौंदर्य व सौष्ठवता अग्रणी रहे है यद्यपि फेसबुक काल में आपकी सौंदर्यता तब तक ही जब तक आपका 30 दिवस का फोटोशॉप ट्रायल पैक एक्सपायर नहीं हुआ हो हा हा हा ।

रोहित का ध्यान, वहां कुछ छात्रो के समूह पर गया, 

एक ने कहा "बेटा कर कॉलेज में प्लेसमेंट है, प्रैक्टिस करते है, मैं इंटरव्यू लेता हु तेरा",

"हम्म तो आप प्रोग्रामिंग एंड लैंग्वेजेज के बारे में कितना जानते है?" 

"तेरे से ज्यादा जानता हु"

"आपकी स्ट्रेंथ क्या है"

"मैं तेज शोर-गुल वाली क्लास में भी सो सकता हूँ, 2 लीटर पेप्सी एक सांस में पी सकता हूँ" 

"आप की होब्बीज क्या है?"

"बस को पकड़ने के लिए उसके पीछे भागना, देर रात जाग कर टोरेंट से डाउनलोड की हुयी 2 -3 मूवीज बेक टू बेक देखना, 

(तेज ठहाको से वो कोच गूँज उठा)

"अबे ऐसे देंगा इंटरव्यू"

"यार सच तो यही है, लेकिन मुझे कौनसी हीरोगिरी करनी हैं सच बोल कर, वो ही कॉलेज वाला रट्टा, वहां भी शुरू कर दूंगा" 


मेट्रो स्टेशन से नीचे उतर कर चिप्स के खाली पैकेट रोड पर फैंक कर छात्र, कॉलेज के तरफ लपके। रोहित को बैटमैन की मूवी 'डार्क नाईट राय्जेज' याद आती है जिसमे अपाहिज हीरो अपनी गोथमसिटी को मुसीबत में देख कर अपनी शारीरिक अक्षमता को भूल फिर से अपने शहर के लिए सभी खतरों से टकरा जाता है और ये लोग अपने शहर को बदरंग करने में भी कोई आमोद ढूंढ रहे है। रोहित की उग्रता ने उन छात्रो का ध्यानाकर्षण तो किया लेकिन दो टूक जवाब से उन्होंने इससे इति कर ली। "आस-पास डस्टबिन नहीं कहाँ फैंके" 

रोहित ने 'सुपर कमांडो ध्रुव' की कॉमिक्स मैं अनेको बार कई जगह पढ़ा हैं की जब ध्रुव (जिसके पास दुसरे सुपरहीरो के सामान कोई अलौकिक ताकत नहीं है) किसी भी दुष्कर और असाध्य खतरे या स्थिति में होता है तो वो उससे निपटने के लिए वहां मौजूद चीजों का ही इस्तेमाल करता है वो बहाना नहीं बना सकता की मेरे पास ये नहीं हैं, वो नहीं है, तो मैं इस बाधा से कैसे पार पाऊ। आप को हर परिस्थिति का सामना उपलब्ध संसाधनो से करना है। रोहित ने वो रेपर उठाये और अपने बैग में रख लिए। 

सात बज चुके हैं निहार पहले ही लेट हो चूका है, "ये क्या 2007 और 2009 में खन्ना एसोसिएशन को गलती से दो बार स्कीम क्रेडिट नोट इशू हो गया वो भी टोटल 83 लाख का, केश या बैंक ट्रांजेक्शन होता तो इजीली पकड़ा जाता, लेकिन फायदा क्रेडिट नोट के थ्रू गया है, ये विकास भी क्या करता है? इतनी बड़ी मिस्टेक को अभी तक नहीं पकड़ पाया। बॉस को बताना पड़ेगा, एक मिनट! बॉस को बताने का मतलब हैं 4 घंटे और ऑफिस में बैठना और फिर अगर ये फाइल मेरे पास नहीं आई होती तब भी 83 लाख का लोस कौन सा पकड़ा जाता, जो चल रहा हैं, चलने दो।" 

रास्ते में जल्दबाजी और हडबडाहट में रेड सिग्नल का ध्यान नहीं रहा, कांस्टेबल ने रोका, 

"पाँचसौ का चालान कटेगा" 

"लेकिन मैं... तो... "

"500 रखो, रसीद लो और आगे बढ़ो" 

कुछ समझौता वार्ता के बाद उदार, स्वार्थहीन, भद्र सज्जन ने सौ रुपये लेना स्वीकार किया, बस शर्त थी की रसीद नहीं मिलेंगी। निहार को थोडा सा अपराध बोध हुआ लेकिन फिर सोचा मुझे कौनसे नैतिकता के झंडे गाड़ने हैं।

"आज का तो दिन ही ख़राब है, अब घर जा कर आज कौन सा बहाना बनाऊंगा, काश की मैं सुपरहीरो होता और सब कुछ ठीक कर देता"

खैर निहार साहब घर पहुँचे, पिताजी को कल के लिए आश्वत किया, पूरे दिन से तैयार पिताजी को दोस्त (शर्माजी) से ना मिल पाने का विषाद, निहार की आखों से छिपा नहीं रहा। पत्नी की अनकही शिकायत को मुस्कराहट से कम करने का प्रयास भी कमतर ही रहा, बेटा की नाराज़गी से तो निंदिया रानी ने बचा लिया, जो पापा से उलट, हमेशा समय पर आती है। 


अगले दिन, रविवार सुबह, दोनों भाई टीवी के सामने।

'कैप्टेन कपिल और गुच्चु गमछा'

चमटू: "कैप्टेन मैंने सुना है की गुच्चु गमछा एक नंबर का वाहियात, जलील और बैगैरत बन्दा है"

कैप्टेन: "लोग तेरे बारे मैं भी ऐसा ही कहते है" (जोरदार ठहाका)

चमटू : "कैप्टेन मैंने हवा में उड़ने वाला सूट बना लिया"

कैप्टेन: "शाबाश चमटू, इसकी मदद से गुच्चु गमछा ज्यादा देर तक बच नहीं पायेगा, ला वो सूट मुझे दे"

चमटू: "लेकिन बॉस वो सूट केवल हवाई जहाज में ही पहन सकते है, तब ही तो उड़ पायेंगे ही ही ही" 

"वो देखो कैप्टेन सामने साइकिल पर गुच्चु गमछा आ रहा है"

"हाँ भाई पेट्रोल जो इनता महंगा है, बंदा एको-फ्रेंडली हैं। लेकिन यहाँ साइकिल पार्किंग बहुत महँगी है, उससे ये मुलकात बहुत महँगी पड़ेगी" 

गुच्चु गमछा: (पार्किंग चार्जेज देने के बाद बचे हुए छुट्टे पैसे गिनते हुए) "पचास पैसे कम है, धोखा हुआ है गुच्चु गमछा के साथ, इस पचास पैसे की छनक 87 दिन तक गूंजेगी, दुनियावालो"

"कैप्टेन कपिल! और चमटू! तैयार हो जाओ मरने के लिए"

कैप्टेन: "प्लीज वेट, थ्री मिनट्स ओनली"

गुच्चु गमछा: ???

कैप्टेन: "जल्दी कर चमटू , वो लाल वाला ठीक रहेगा, अरे ये थोडा नीचे कर, हां अब ठीक है, इसका बटन बहुत टाइट है " 

चमटू: "कैप्टेन आप तो जम रहे हो" 

गुच्चु गमछा : (चिल्लाते हुए) अरे कोई बतायेगा ये हो क्या रहा है? मेने साइकिल किराए पर ली है, मुझे जल्दी जाना है, (धीमी आवाज़ में) प्लीज मुझ से लड़ लो, प्लीज मर जाओ ना"

कैप्टेन: "भाई तूने ही तो कहा था की मरने के लिए तैयार हो जाओ, इसलिए हमने मरने के लिए स्पेशल ड्रेस सिलवाइ थी आज पहली बार पहन का देखा है, अब तैयार होने में थोडा तो टाइम लगता ही हैं, स्माइल प्लीज" (खुद की और चमटू की फेसबुक के लिए ऑटो मोड पर फोटो लेते हुए)

गुच्चु गमछा: "हा हा हा मैंने कहाँ मरने के लिए तैयार और तुम लोग वाकई वैसे वाले तैयार… हा हा हा… हा हा हा" (धम्म, जमीन पर धडाम) 

… गुच्चु गमछा हँसते-हँसते मर गया, हंसी ही इसकी कमजोरी थी। एक बार फिर कैप्टेन कपिल और चमटू ने दुनिया बचा ली। (हा हा हा)… 


रोहित और निहाल बच्चो की तरह खिलखिला कर हंस पड़े। 

"सही है हर प्रॉब्लम की तोड़ है हंसी"

"एक लाफ्टर एक स्माइल पूरी टेंशन को धो डालती हैं"

"भैया हमारा सुपर हीरो भी हँसमुख होगा, विलेन का भी थोडा एंटरटेनमेंट हो जाएगा हा हा हा"

रोहित , एक हंसमुख व्यक्ति अपने आप में सुपरहीरो है, कल का दिन अच्छा नहीं गया, लेकिन अगर चेहरे पर मुस्कान होती तो शायद इतना बुरा नहीं जाता।"

"सही कहा भैया, काफी रिसर्च करने पर मैं मानता हूँ की हमारा सुपरहीरो बाकि हीरो की तरह ड्यूटीफुल, डेडिकेटेड, आइडियलिस्टिक, हेल्पफुल, फ्रैंक, बोल्ड, फिट, जेनरस और फैथफुल होना चाहिए लेकिन उसके पास कोई सुपर नेचुरल पॉवर नहीं होगी"

"सुपर कमांडो ध्रुव और डोगा की तरह?"

"हाँ, लेकिन वो इन दोनों से भी थोडा अलग होगा"

"अलग?"

"अलग!, क्योंकि वो लिविंग सुपरहीरो होगा, बिलकुल जीता-जागता रियल लाइफ सुपरहीरो , स्क्रीन और कॉमिक्स फ्रेम से बाहर"

"रोहित तू, पागल हो गया क्या? लिविंग सुपर हीरो कहाँ से आएगा" 

"भैया, वो आप हो!"

"जबसे समझ आई है, आप को ही आदर्श माना हैं, आप के कंधो पर बैठ कर दुनिया के उतार चढाव समझे हैं, आप में वो सब क्षमताये हैं जिनसे एक सुपरहीरो बनता है"

निहार सकते में आ गया, सहसा छाती में एक उबाल उठा की इस मिथ्या, बनावटी, आभासी प्रतिरूप को खींच कर उतार दू और चिल्ला-चिल्ला कर बोल दू की मेरे जैसा अधर्मी, अविश्वसनीय, अनुत्तरदायी, छली, मंथर और संयमहीन भला कौन होगा, लेकिन रोहित के सजल आँखों में छलक रहे विश्वास और प्रेम ने उसकी जिह्वा को भीतर ही समेट दिया।

रविवार सुबह निहार और अवकाशों से भिन्न जल्दी उठा, बेटे को कंधे पर बैठा उद्यान की सैर करवाई, खेल रहे बच्चो को लंगड़ी-टांग सिखाया, तथापि इस खेल में बचपन से चली आ रही अपराजेयता को निहार ने कुछ मासूम खिलखिलाहट के लिए गँवा दी। विषाद और उदास समझे जाने वाली बुजुर्ग मण्डली में निहार के सम्मिलित होते ही हंसी ठट्ठा की खोज हुयी। आरोग्यता हेतु योगा किया जो वर्षो किये जा रहे स्वांग और समयाभाव दलीलों से कभी स्मरण नहीं हुआ। आखिर सुपरहीरो के लिए फिटनेस तो अहम् है ही। रुग्ण शर्माजी की पिताजी से भेंट करवाई, लगे हाथो कुछ धार्मिक पुस्तके अप्रत्याशित उपहार दे कर सौभाग्य के वरदान भी बटोरे।

श्रीमती को दोपहर सिनेमा चलने का प्रस्ताव रखा। 
"दोपहर नहीं रात को चलेंगे"
"रात को भी चल सकते है लेकिन एक रिस्क है"
"रिस्क?"
"कहीं लोग आपको चाँद समझ कर अपना व्रत न तोड़ ले"
प्रेम पर वर्षो बाद पुराना रंग चढ़ गया। 

संध्या से पहले मोहल्ले की पगडण्डी पर लगे सभी पौधों को आवरण से संरक्षित किया। काफी समय बाद, शाम को पुराने दोस्तों के मेसेज पढने के बजाय उनकी आवाजे सुनी, अगले दिन पहली बार कोई स्वेच्छापूर्ण गोयल साहब के केबिन मैं घुसा, खन्ना एसोसिएशन वाली बात बताते हुए उस का रिकोंसिलेशन का स्टेटमेंट सुपुर्द करके गोयलजी के मुहँ से प्रशंसा सुनने वाले दुनिया के इकलौते और प्रारम्भिक व्यक्ति बने। 

उधर रोहित मंद-मंद आनंदित हो रहा हैं, क्यों ना हो, कल तक सबके लिए अनचाहे बनते जा रहे बड़े भैया से एक झूठा पर मीठासा विश्वास दर्शा कर उसने असली सुपर हीरो की खोज कर ली थी, जो बच्चो के खिलखिलाहट, बुजुर्गो की दुआओं, दोस्तों की मस्ती, हमसफ़र के प्रेम, अभिभावकों के सपनों, समाज की जिम्मेदारी और प्रकृति की ख़ूबसूरती में समाया है। 

"भैया आप तो सुपर हीरो बन गए, अब मैं क्या बनू"
"तू मेरा 'चमटू' हैं ना" हा हा हा...

रचियता: कपिल  चाण्डक 
Author: Kapil Chandak



Image Courtesy : Google  
THIS BLOG claims no credit for any images posted on this site unless otherwise noted. Images on this blog are copyright to its respectful owners. If there is an image appearing on this blog that belongs to you and do not wish for it appear on this site, please E-mail with a link to said image and it will be promptly removed.
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...