Saturday, March 12, 2011

जब मैं छोटा बच्चा था (कहानी)

Me (Kapil) and My Sister (Kavita)
ये बात शायद वर्ष 1986 या 1987 की है तब मैं 4 साल का था और मैंने स्कूल जाना शुरू ही किया होगा। तब तक मैं ये सीख चूका था की हवाई जहाज जब आपके घर की छत के ऊपर से गुज़रे तो आप जल्दी से उसे उछल कर पकड़ ले और घर के अन्दर ले जाये लेकिन ध्यान रहे की सभी खिडकिया और दरवाजे बंद रहे नहीं तो वो वापस बाहर उड़ जाएगा। 

 उस रात मैं अतिउत्साहित था। कारण भी तो था कि नए-नए स्कूल बैग और पानी की छोटी बोतल ले कर सुबह स्कूल जाना था। कुछ दिनों स्कूल जाने के बाद लगने लगा कि मैं कितना नादान और कम अक्ल था जो अपनी बड़ी बहन (मुझसे 2 साल बड़ी) के अकेले स्कूल जाने पर जिद करता था की मुझे भी जाना है। मेरी काल्पनिक दुनिया में स्कूल, दुनिया की सबसे अच्छी जगह थी जहाँ आप रोज़ एक जैसे दिखने वाले कपडे पहन कर जाते हो और वहां जाते ही आपके पास 5-6 घंटो की सत्ता आ जाती है जिसके बल पर आप वो सब कर सकते हो जिसके घर पर करने पर कहा जाता है की "बाबा आ जायेगा" "काला भूत खा जायेगा" "ये बड़े चूहों की कोठरी है" "भगवानजी पाप देंगे" "बाथरूम में बंद कर दूंगी" "ये तो मेरी मम्मी/ मेरे पापा है" "ये खा ले नहीं तो बबलू को दे दूंगी" "हम सब जा रहे है घूमने इसको छोड़ देते है"।

मैं और मेरी बहन एक ही स्कूल में थे, स्कूल पास में ही था पैदल जाते थे, रास्ते में अंकल का घर था जो हमे रोज़ पार्ले ओरेंज टॉफी देते थे (जो आज भी मेरी पसंदीदा  है)। एक दिन हम दोनों जिन्हें कि बलपूर्वक जगा कर तैयार किया गया था स्कूल के लिए निकले मेरी बहन ने मुझे कहा की हम स्कूल की जगह आज हनुमान जी के मंदिर चलेंगे। मैं जिसे की स्कूल जाने का कुछ ही दिनों का तजुर्बा था ने सोचा शायद ऐसा करते होंगे। ये भी स्कूल जाने की गतिविधि का कोई भाग होगा जो मेरे संचित ज्ञान से परे है। हम दोनों जौहरी बाज़ार (ये जयपुर का प्रसिद्ध पुराना बाज़ार है) के हनुमान मंदिर गए और मेरी बहन के कहने पर मैंने भी हनुमान जी से जल्दी से 12 बजने यानि स्कूल की छुट्टी होने की प्रार्थना की और जल्दी ही घड़ी में 12 बज भी गए। 12 बजने से पहले हमने कई नवीन और पहलपन से भरपूर कार्य किये। सड़को पर घूमे, भीड़ भाड़ मैं बिना सहायता सड़क पार करने का साहसपूर्ण फैसला किया, एक नयी बन रही इमारत को कोतुहल भरी निगाहों से देखा, मंदिर के पुजारीजी से बोतल में भरने के लिये पानी माँगा जो समय बिताने के लिए अनावश्यक और बार-बार पीने के कारण खाली हो जाती थी। घर लौटते समय दीदी ने रहस्यमयी बात बताई की हमें ये सब घर नहीं बताना है। मैंने सोचा शायद ऐसा करते होंगे। कुछ दिनों तक हमारा स्कूल के अलावा और सभी जगह जाने का दूरगामी निर्णय दृढ रहा।

एक दिन सुबह स्कूल के ही नजदीक घूमते हुए मैंने देखा की सामने खड़ी कार के शीशे में पापा का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था मैंने मेरी बहन को सहर्ष ये बताया और उसने पीछे मुड़ कर देखा तो पापा ही थे। मैंने सोचा की चलो आज तो समय ज्यादा जल्दी और मज़े से निकल जायेगा लेकिन इसके उलट पापा हम दोनों को पकड़ कर स्कूल ले गए। स्कूल में बड़ी मेम ने पापा से कहा कि ये दोनों काफी दिनों से स्कूल नहीं आ रहे थे इसलिए हमने आपको सूचित किया ताकि कारण जान सके। तब से मुझे मालूम चला की स्कूल के लिए घर से निकल कर स्कूल के अलावा हर कहीं जाना अपराध की श्रेणी में आता हैं। बड़ी मेम ने फ़तवा सुनाया की इन्हें ऊपर वाले कमरे में बंद कर दो। ऊपर वाला कमरा एक तरह से स्कूल का स्टोर रूम था जहाँ चोक के डिब्बे, ब्लैक बोर्ड और कुछ पुराना फर्नीचर रखा था। उस कमरे की खिड़की बाहर चौक में खुलती थी जहा खेल घंटी में बच्चे खेलते थे। हम दोनों बंद होने के बाद सोचते है कि चूंकि अब हमें पूरी जिंदगी यही बितानी होगी इसलिए हमें नियोजित तरीके से काम करना होगा। बिना समय गवांये हम दोनों ने समझदारी से पूरी जिंदगी की रणनीति बना ली। तय हुआ की थोडा-थोडा कर के टिफिन में रखा खाना खायेंगे और पानी भी हम 5-6 दिन चला लेंगे। उसके बाद बरसात हो जायेगी और हम खिड़की से बोतल बाहर निकाल कर पानी भर लेंगे। खाना खत्म होने के बाद हम चोक (जो ब्लैक बोर्ड पर लिखने के काम आते है) खा लेंगे; क्योंकि हमे चोक और पेंसिल का स्वाद तो अच्छा लगता ही था। अब हम पूरी तरह से अनुत्तरदायी और संतुष्ट थे।

खेल घंटी होती है सभी बच्चे नीचे चौक में खेलने के लिए जमा हो जाते है। हम दोनों उन्हें ऊपर से राजनेताओ की तरह हाथ हिला-हिला कर अभिवादन कर रहे थे मानो हमने अभी-अभी सिकंदर से भी बड़ी विजय प्राप्त की हो। बाद में उन्हें दिखा-दखा कर अजीब और हैरतअंगेज तरीके से अपने टिफिन में से खाना खाने लग गए। किसी बच्चे ने बड़ी मेम को जा कर इस तथ्य से अवगत कराया। हमे तुरंत नीचे बुलाया गया। मुझसे लगा शायद बच्चो और बड़ी मेम को हमारा ये नवीन उपक्रम ज्यादा पसंद नहीं आया और शायद अब हमें पुलिस पकड़ कर जेल में बंद कर देगी। लेकिन उस दिन शायद मेरी लकी पेंसिल ने हमे बचा लिया और हमे ये कह कर कक्षा में भेज दिया की भविष्य में दोबारा ऐसा नहीं करना।

#गुज़रे ज़माने, #शरारते, #संस्मरण, #हास्य, #हिंदी कहानी, #HindiStories #KapilChandak

रचियता: कपिल  चाण्डक 
Author: Kapil Chandak

3 comments:

CS Amit Jain said...

अच्छा लिखते हो दोस्त जारी रखो.. KEEP MOVING.

akash-admin said...

superb writing

Ravi said...

very heart touching...keep it on

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