बहुत दिनों से कुछ नया (अज़ीब) कार्य नहीं किया था। इसलिए सभी बच्चो का इकठ्ठा किया और एक उद्यानभोज (पिकनिक) की घोषणा कर दी। उस समय मैं कक्षा आठ का विद्यार्थी होने के साथ-साथ छात्रनायक भी था। लगभग सभी सहपाठियों जोकि हर समय पढाई को नज़रअंदाज़ करने का अद्वितीय तर्क ढूँढते रहते थे ने इस प्रस्ताव पर अपनी अस्थायी स्वीकृति दे दी। मैंने हाथों-हाथ इस महायोजना की रूप रेखा तय कर ली। ठेठ राजस्थानी भोजन "दाल बाटी चूरमा" को सर्वसम्मति मिल गयी। यथासमय लगभग सभी सहपाठियों से उनकी योगदान राशि एकत्र कर ली गई। कच्ची रसोई का अधिकांश सामान हमारी ही कक्षा के एक छात्र प्रकाश खंडेलवाल* (जिसका नाम बहुत ज्यादा मोटा चश्मा लगाने के कारण डीप्स्या रखा गया था) की दूकान से यह कह कर ख़रीदा गया की बचा हुआ माल वापस कर दिया जाएगा। हालांकि इस बात पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया की पका हुआ भोजन भला वापस कैसे होगा। समय बचाने के लिए हमने खाना घर से ही बना कर ले जाना उचित समझा। रामकुमार धोबी ने कहा की मैं सारी बाटी बनवा लाऊंगा, सुमित शर्मा* जिसको हम लोग उसकी हरकतों के कारण प्यार से भिखारी बोलते थे (गुस्से से भी भिखारी ही बोलते थे) को बेसन और गेंहू का चूरमा बनाने का काम इस बुनियाद पर दिया गया की वह अंशकालिक रूप से अपने घर में खाना बनाया करता था तथा उसके पिताजी चूरमा बनाने में निपुण थे। दाल बनाने का जिम्मा मैंने लिया और मिर्च का ताराशंकर वर्मा ने। पत्तल-दोने, नमकीन आदि खरीद ली गयी। चटाई, दरी और अन्य सामान नियोजित तरीके से कुछ छात्रो के घर से मंगवा लिए गए। सुबह सात बजे विद्यालय के सामने सभी का मिलना निश्चित हुआ। सभी व्यवस्था करने के बाद जब मैं रात को घर पहुंचा तो मेरी बहन जिसको मैंने दाल बनाने के लिए राज़ी किया था ने बताया की कोई रामकुमार धोबी गुंथे हुए आटे की बाल्टी ये कह कर दे गया की आज वो किसी अपरिहार्य कारणों से बाटिया नहीं बनवा पायेगा। करीब चालीस बच्चे जिन्होंने अपनी जेब खर्च का बहुत बड़ा हिस्सा मुझे इस गोठ का हिस्सा बनने के लिए दिया था, कल सुबह सात बजे विद्यालय के बाहर मेरे लिए घात लगा कर बेठे होंगे और मैं यहाँ रात के नौ बजे इस सोच में हूँ की अब करीब 150-200 बाटी कौन बनाएगा। :-(
भिखारी का घर पास में ही था मैं उसके घर गया, सब कुछ बताया और अपूर्व बुद्धिमत्ता का ढोंग करते हुए मैंने उसे सारी बाटिया बनाने के लिए अभिप्रेरित किया। भिखारी ने डीप्स्या को भी इस गोपनीय और आत्मघाती योजना का अंश बनाने का प्रस्ताव रखा। यहाँ यह बताना सारगर्भित होगा की भिखारी और डीप्स्या ख़ुदग़रज़ी के कारण सशर्त अच्छे मित्र थे क्योंकि दोनों ही विद्यालय के शीर्ष उपेक्षित छात्रो में आते थे। करीब तीन घंटे तक बिना किसी महान अप्रिय घटना के हम सारी बाटिया बनाने में सफल हो गए। सुबह पांच बजे उठ कर तैयार होकर में भिखारी के घर पहुंचा जहाँ पर डीप्स्या पहले से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका था। भिखारी ने एक ठोस दावा किया की चूंकि उसके पिताजी ने चूरमा बनाते समय थोडा सा घी अपनी तरफ से और मिलाया था इसलिए उसका छोटा भाई गंजू* भी बिना योगदान राशि के गोठ में चलने का हक़दार बनता है। डीप्स्या की आरम्भिक आपत्ति के बात मैंने बेमन से अपनी सहमति दे दी। डीप्स्या के घर से बाटिया लेते समय मौका देख कर उसने ने भी दांव चल दिया। डीप्स्या के अनुसार उसका छोटा भाई सुरेश* भी बिना योगदान राशि के गोठ में चलने का स्वत्वाधिकारी हैं क्योंकि उसने भी कल रात रहस्मयी तरीके से कुछ आटा बाटियो में मिलाया था। बात पूरी होने से पहले ही भिखारी और डीप्स्या में महासंग्राम छिड़ गया। भिखारी ने कहा की कपिल तुम्हे पता नहीं कल रात को तुम्हारे जाने के बाद डीप्स्या ने कुछ बाटिया खा ली थी। डीप्स्या ने भी प्रत्याक्रमण करते हुए कहा की कपिल तुम्हारे जाने के बाद इस भिखारी ने भी कुछ चूरमा घर के लिए अलग से निकाल लिया था। चूंकि मेरे लिए इन दोनों की ये हरकते नयी नहीं थी इसलिए मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
हम पांचो (मै, भिखारी, गंजू*, डीप्स्या और सुरेश* ) सारा सामान ले कर विद्यालय के सामने पहुंचे। थोड़ी ही देर में सभी सहपाठी एकत्रित हो गए लेकिन सुनील सामरिया जो की वर्तमान में भी मेरे अभिन्न मित्र है वहां किसी गूढ, गहन और गुप्त प्रयोजन से नहीं आये। चूंकि सुनील सामरिया के बिना ज्यादा मज़ा नहीं आता इसलिए मैंने कुछ छात्रों को मान मनोव्वल के लिए सुनील सामरिया के घर भेजा। घर पास में ही था कुछ ही देर में सुनील सामरिया दूर से आता हुआ दिखाई दिया। ये देख कर भिखारी और डीप्स्या का सब्र कब्र में दफ़न हो गया। दोनों बोले की ये तो बिना पैसे दिए गोठ जाएगा हमने तो पैसे दिए है जाने के लिए, अगर ये जाएगा तो हम तो नहीं जाने वाले । इतना कह कर दोनों ने खाने के सामान का थैला नीचे रख दिया और कहा की हमारे हिस्से का खाना हम को दे दो और हमारे भाइयो का भी दे दो। एक बार फिर मुझे सत्य का ज्ञान हुआ की क्यों इनको लोग भिखारी और डीप्स्या कहते है। इस से पहले की मैं इन दोनों की हरकतों के बारे में कोई दूरगामी फैसला लेता, सुनील सामरिया ने दूर से आते हुए अपने हाथ में एक नोट निकाल कर हवा में लहराया। नोट देखते ही दोनों ने अपने दृढ विचारो में तब्दीली लाते हुए खाने के सामन का थैला उठाकर कहा की चलो भाई पिकनिक के लिए देरी हो रही है।
भिखारी का घर पास में ही था मैं उसके घर गया, सब कुछ बताया और अपूर्व बुद्धिमत्ता का ढोंग करते हुए मैंने उसे सारी बाटिया बनाने के लिए अभिप्रेरित किया। भिखारी ने डीप्स्या को भी इस गोपनीय और आत्मघाती योजना का अंश बनाने का प्रस्ताव रखा। यहाँ यह बताना सारगर्भित होगा की भिखारी और डीप्स्या ख़ुदग़रज़ी के कारण सशर्त अच्छे मित्र थे क्योंकि दोनों ही विद्यालय के शीर्ष उपेक्षित छात्रो में आते थे। करीब तीन घंटे तक बिना किसी महान अप्रिय घटना के हम सारी बाटिया बनाने में सफल हो गए। सुबह पांच बजे उठ कर तैयार होकर में भिखारी के घर पहुंचा जहाँ पर डीप्स्या पहले से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका था। भिखारी ने एक ठोस दावा किया की चूंकि उसके पिताजी ने चूरमा बनाते समय थोडा सा घी अपनी तरफ से और मिलाया था इसलिए उसका छोटा भाई गंजू* भी बिना योगदान राशि के गोठ में चलने का हक़दार बनता है। डीप्स्या की आरम्भिक आपत्ति के बात मैंने बेमन से अपनी सहमति दे दी। डीप्स्या के घर से बाटिया लेते समय मौका देख कर उसने ने भी दांव चल दिया। डीप्स्या के अनुसार उसका छोटा भाई सुरेश* भी बिना योगदान राशि के गोठ में चलने का स्वत्वाधिकारी हैं क्योंकि उसने भी कल रात रहस्मयी तरीके से कुछ आटा बाटियो में मिलाया था। बात पूरी होने से पहले ही भिखारी और डीप्स्या में महासंग्राम छिड़ गया। भिखारी ने कहा की कपिल तुम्हे पता नहीं कल रात को तुम्हारे जाने के बाद डीप्स्या ने कुछ बाटिया खा ली थी। डीप्स्या ने भी प्रत्याक्रमण करते हुए कहा की कपिल तुम्हारे जाने के बाद इस भिखारी ने भी कुछ चूरमा घर के लिए अलग से निकाल लिया था। चूंकि मेरे लिए इन दोनों की ये हरकते नयी नहीं थी इसलिए मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
हम सभी वहां से लगभग चार-पाँच किलोमीटर दूर स्थित रामनिवास बाग़ पहुंचे। पास में ही चिड़ियाघर और अल्बर्ट संग्राहलय था। तय हुआ की दो लोग रूक कर सारे सामन का ध्यान रखेंगे और बाकि लोग चिड़ियाघर और अल्बर्ट संग्राहलय देखने जायेंगे। भिखारी और रामकुमार धोबी रुके। वापस लौटने पर हमने देखा की कुछ अमरुद और केले जो की हमने विद्यालय से रवाना होते समय रास्ते में ख़रीदे थे के टूकड़े वहां ज़मीन पर फैले थे और दुसरे फल भी कम थे। अनुसंधान करने पर भिखारी ने बताया की हम लोगो को नींद आ गयी और शायद कुछ गिलहरियों और चिड़ियों ने इन्हें खा लिया होगा। उनकी इस परी कथा को ना मानने का कोई उपयुक्त कारण हमारे पास नहीं था । हालाँकि ये आज भी एक अनसुलझा रहस्य है की जो छिलके वहां बरामद हुए थे वे किसी चाकू से छीले हुए थे और गिलहरियों और चिड़ियों ने उन्हें चाकू से कैसे छीला होगा?
*परिवर्तित नाम
*परिवर्तित नाम
रचियता: कपिल चाण्डक
Author: Kapil Chandak
Image Courtesy : Google
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6 comments:
jiju apne ye to bta diya ki ap apne dosto ko pyar se ya gusse se "BHIKHARI or DIPSIYA" bolte they ....lekin apne ye nhi btaya ki apke dost ap per kis tarah gussa or pyaar barsate they...
apka bhi koi intersting sa name rha hoga na******
@ Shilpiji, hamaari class mein kafi bachho ke naame rakhe gaye the jaise " Kankaal, Neembu, Hathi, Makdi, Mor, Bichho, Kali-Mata, Aaloo etc. teachers ke bhi naam rakhe gaye the jaise Mendhak, Nariyal, Batakh etc. (however most of names for classmates and teachers suggested by me but luckly I was never renammed by my friends :P)
haaa....haaa...cctv camera lagva dete..yaaar..lol...interesting
Apni yaadon par bahut khoobi se pyaar barsaya hai aapne...bahut achchha writeup hai, Kapil ji. :)
Thanks mohit ji
Kapil, This is best story. I enjoyed lost, You are Really Star. I feel proud that I had chance to school friend like you, I will share with my family and Friends.
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